गुनाहों का देवता हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है।[1] यह सबसे पहले १९४९ में प्रकाशित हुई थी।[2] इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है।
इस उपन्यास की कहानी इलाहाबाद शहर के पृष्ठभूमि में रची गई है और यह मुख्य रूप से चंदर और सुधा के प्रेम को केंद्र में रखती है।