सरकारी चाय के लिए प्रेम शंकर चरड़ाना का पहला उपन्यास है — जो उन युवाओं की दुनिया में झांकता है जो सरकारी नौकरी की तैयारी में अपने घरों से दूर शहरों में संघर्ष कर रहे हैं। यह कहानी सिर्फ परीक्षा पास करने की नहीं, बल्कि उस पूरे जीवन की है जिसमें किराए के कमरे होते हैं, कटती हुई तन्हा शामें होती हैं, टपकती छतों के नीचे रखे सपने होते हैं, और चाय के कप के साथ बनने वाले रिश्ते होते हैं। लेखक ने बहुत सादगी से उस सच्चाई को लिखा है जो हर प्रतियोगी छात्र के जीवन का हिस्सा बन जाती है — कोचिंग की भागदौड़, बार-बार की असफलताएं, उम्मीदों का बोझ, और फिर भी हिम्मत न हारने वाला जज़्बा।