
महाभोज (Mahabhoj) Book by - मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) - Radhakrishna Prakashan
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महाभोज – मन्नू भंडारी मन्नू भंडारी का महाभोज उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएं या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती-मरती हैं! महाभोज विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है! जनतंत्र में साधारण जन की जगह कहाँ है? राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फांसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है! इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और कहती है! हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं! उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं!-खरे सिक्के एक तरफ फेंक दिए गए हैं! महाभोज एक ओर तंत्र के शिकंजे की तो दूसरी ओर जन की नियति के द्वन्द की दारुण कथा है! अनेक देशी-विदेशी भाषाओँ में इस महत्त्पूर्ण उपन्यास के अनुवाद हुए हैं और महाभोज नाटक तो दर्जनों भाषाओँ में सैकड़ों बार मानचित होता रहा है! ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (दिल्ली), द्वारा मानचित महाभोज नाटक राष्ट्रीय नाट्य-मंडल की गौरवशाली प्रस्तुतियों में अविस्मर्णीय है! हिंदी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है महाभोज!