कतरनें (Katranein) न कहानी, न कविता - Manav Kaul
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कतरनें (Katranein) न कहानी, न कविता - Manav Kaul

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Description

मेरा नाम कतरनें हैं, मैं आपकी किताब हूँ। जी हाँ, मैं आपसे ही बात कर रही हूँ। आपने मुझे ही अपने हाथों में लिया हुआ है। आपको अजीब लग रहा होगा कि किताब आपसे कैसे बातें कर सकती है? पर मैं आपको बता दूँ कि हम किताबें यही करती हैं– बातें। जब आप हमें पढ़ रहे होते हैं तो वो सारी बातें ही हैं जिनके ज़रिए कहानी के संसार में आपका प्रवेश होता है। उस कहानी के एक सिरे पर आप होते हैं और उसका दूसरा सिरा किताब होती है। कहानी बीच में कहीं घट रही होती है। इस प्रक्रिया में यूँ, हम किताबें कभी अपनी सीमा नहीं लाँघती हैं, हम कहानी और आपके बीच में हमेशा अदृश्य-सी बनी रहती हैं। कभी-कभी किताबों के ज़रिए लेखक आपसे सीधे बात करता है, वो आपके और कहानी के बीच में लगा हुआ पर्दा हटा देता है, नई कहानियाँ कहने की कला में किताबें ऐसे प्रयोगों को बहुत उत्साह से अपनाती हैं। पर एक किताब लेखक की रज़ामंदी के बिना आपसे सीधे बात करे ये बहुत कम ही होता है। मैं, आपकी किताब भी कभी ये क़दम उठाने का नहीं सोचती, पर इस किताब की रूपरेखा ही लेखक ने कुछ ऐसी रखी है कि इसमें कुछ नया करने की आज़ादी की बहुत जगह है। ‘आज़ादी’ कितना सुंदर शब्द है न, मुझे बहुत पसंद है। शायद इसी शब्द की वजह से मैं लेखक की इजाज़त के बग़ैर आपसे बात कर पा रही हूँ।—इसी पुस्तक से।