बाग़ी बलिया सिर्फ़ एक शहर की कहानी नहीं, बल्कि उस मिट्टी की भी दास्तान है, जहाँ बग़ावत साँसों में बसी है। यह उपन्यास बलिया जैसे ऐतिहासिक और विद्रोही शहर की पृष्ठभूमि में रची गई एक ऐसी कहानी है जिसमें प्रेम है, राजनीति है और जद्दोजहद है।
कहानी के केंद्र में है संजय — एक युवक जो चुनाव जीतना चाहता है लेकिन जिसके पास सत्ता तक पहुँचने का ‘आशीर्वाद’ नहीं है। वहीं रफ़ीक़ भी है — जो शहर की उथल-पुथल के बीच उज़मा का दिल जीतने की कोशिश कर रहा है। और डॉ. साहब — जिन्हें यक़ीन है कि संजय एक दिन नेतृत्व के मुक़ाम तक ज़रूर पहुँचेगा।
सत्य व्यास की कलम इस बार बलिया की सड़कों, सभाओं, मोहब्बतों और साज़िशों के बीच एक ऐसी कहानी बुनती है जो कभी प्रेम कथा लगती है, कभी युद्ध का मैदान — जहाँ दिल भी टूटते हैं और इरादे भी मज़बूत होते हैं।
"बाग़ी बलिया" एक ऐसा उपन्यास है जो पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या किसी शहर की बग़ावती रूह इंसानों की तक़दीर भी बदल सकती है?